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कवि हरि शंकर गोयल

Inspirational

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कवि हरि शंकर गोयल

Inspirational

खुशी

खुशी

2 mins
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सब कह रहे हैं कि वे खुश हैं

अपनी अपनी दुनिया में 

फिर ये दुखियारे लोग कौन हैं 

जो तड़प रहे हैं दर्द के मारे । 


क्या ये किसी की 

कातिल नजरों से घायल हैं 

या इनको परेशान करते

 कंगना , झुमके, पायल हैं ?


किसी के होंठों की लाली ने 

इनका चैन चुरा लिया है ? 

या फिर किसी ने अपनी जुल्फों की 

गिरफ्त में इनको फंसा लिया है ? 


किसी के बदन की महक 

किसी को सोने नहीं देती 

तो किसी की मतवाली चाल 

किसी को खुश होने नहीं देती  


मैंने सुना है अक्सर यह कहते हुए 

"सखि, काश 'ये' मुझे समझ पाते 

तो अपने भी ख्वाब हसीं हो जाते" 

वो आज कह रहीं हैं कि वे खुश हैं 

शिकायत भी करती हैं और 

खुद को खुश भी बताती हैं 

समझ नहीं आता है कि वे 

खुद पागल हैं या हमें बनाती हैं ?


पुरुष बिरादरी से बहुत शिकायत है इन्हें 

मगर , उसी को अपनी दुनिया भी बताती हैं 

ये दुविधा की नाव में सवार होकर 

आनंद के सागर में गोते कैसे लगाती हैं ? 


सबने अपनी अपनी दुनिया बसा रखी है 

सब कह रहे हैं कि उस दुनिया में खुशहाल हैं 

क्या वाकई ऐसा है जैसा कि दिख रहा है 

या फिर इनका बनाया हुआ ये कोई भ्रमजाल है  


जब सब खुश हैं तो फिर 

ये सागर आंसुओ से क्यों भरे हैं 

वो जख्म जो दिये थे कभी अपनों ने 

वे आज तक क्यों हरे हैं ? 


ये हवाएं जो इतनी "तप" रहीं हैं 

ये इस कदर क्यों खफा हैं ? 

ये जो बादल बरस रहे हैं धाड़ धाड़ कर 

क्या ये किसी की बेवफ़ाई से खफा हैं ? 


सूरज इतना "गर्म" क्यूं है ? 

क्या ये किस की सफलता से "जल" रहा है ?

ये चांद अमावश को कहीं छुप जाता है 

क्या ये भी अपने ही "दागों" से डर रहा है ?


गुलशन भी मायूस होकर 

उजड़ जाता है साल भर में 

वो भी तो ग़म के आंसू पी रहा है 

मुझे तो कोई खुश नजर नहीं आता 

हर कोई गमों के बोझ तले जी रहा है 


खुश वही है इस दुनिया में जिसने 

गीता के "योग" को अपना लिया है 

"मैं मेरे" की दुनिया से बाहर निकल के

"प्रभु" की दुनिया से नेह लगा लिया है. 



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