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Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

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खुद रोयेगा, मुझे भी रुलाएगा

खुद रोयेगा, मुझे भी रुलाएगा

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व्यंग्य - खुद रोयेगा, मुझे भी रुलाएगा
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आज पहली बार मैंने यमराज की दु:खी देखा 
इतना असहज मैंने उसे पहले कभी न देखा था 
बेचारा कुछ बोल भी नहीं पा रहा था।
मैंने हौसला बढ़ाया, शीतल जल पिलाया 
अपने पास बैठाकर दुलराया
कुछ देर में ऐसा लगा कि बंदा अब कुछ लाइन पर आया।
मैंने प्यार से पूछा - ऐसा क्या हो गया भाया
जिसने मेरे यार की चूलें हिलाया।
उसने जो बताया, वो हमारे लिए तो आम बात है,
हमारे यहाँ वैसे भी कौन, किसको भाव देता है,
अपने अब अपने नहीं रहे
वे ही दुश्मन बनते सबसे बड़े,
मान सम्मान तो अब कथा कहानियों में अच्छे लगते हैं 
मर्यादा के दिन तो कब के लद चुके हैं।
संवेदनाओं का दौर भी अब जा रहा है,
विश्वास की आड़ में स्वार्थ का नृत्य नसरेआम रहा है,
रिश्ते भी रिश्तों का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं 
आये दिन रिश्तों का खून होने की खबरें 
समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर छप रहे हैं, 
जाने किस दौर में हम आप जा रहे हैं
जानवर भी अब हमें चिढ़ाने लगे हैं।
यमराज की बात सुनकर मैंने उसे समझाया - 
तू भी आदत डाल ले भाया,
अच्छा होगा - सतर्कता संग सावधान हो जा यार
हो सके तो यमलोक में एक प्रस्ताव भी पास करवा ले।
वरना तू और व्याकुल होता ही जाएगा,
वहाँ की व्यवस्था में भी जब सेंध लग जायेगा
धरती लोक का असर यमलोक तक पहुँच जायेगा।
फिर यहाँ और वहाँ में अंतर क्या रह जाएगा?
क्या तेरे और तेरे चेलों के लिए खतरा नहीं बढ़ जाएगा?
पूरी ईमानदारी से कहता हूँ,
तब तू भी कुछ नहीं कर पायेगा,
मुझसे भी तेरी समस्या का कोई हल नहीं मिल पायेगा,
तब तू खुद तो रोयेगा ही, मुझे भी रुलाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र) 


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