खुद को काट-छांट
खुद को काट-छांट
खुद को काट
खुद को छांट
खुद पर प्रहार
खुद पर वार।
खुद को निहार
खुद को सँवार
खुद को सुधार
खुद को रोक
खुद को टोक।
खुद पे खुद ही मत हो लहालोट
खुद में खुद ही निकाल खोट
खुद को रच समझ कर सच
खुद का बन खुद से खुदा
कमल-सा रह कीचड़ से जुदा।
खुद को डांट, खुद को डपट
खुद से ले खुद की रपट
मौका मिले तो ले झपट
न मिले तो उगा झटपट।
सिर पर न हो मास्साब की डंडी
खो जाए गुरुकुल की पगडंडी
जीवन न हो जाएं ठंडा
खुद पर खुद से डंडा।
तुझे खिझाने को लोग आएंगे
तुझे रिझाने को लोग आएंगे
तुझे भटकाने को लोग आएंगे
तुझे सताने को लोग आएंगे।
मान इसे सफलता की चढ़ाई
जारी रख जीवन की पढ़ाई
जब तक साजिशे न हो तेरे खिलाफ
जब तक नफरत खुलकर न आएं।
कुछ दोस्त भी न दुश्मन बन जाएं
कुछ विरोधी जो न आके गले लगाएं।
समझ लेना नहीं कर रहा तू कुछ नया
गर कोई न तेरी राहों में कांटे बिछाएं
जितने उतरेगा गहरे में
उतने मोती तुझे मिलेंगे
जितनी छोड़ेगा बातें छोटी/ओछी/थोथी
उतनी भी सफलता की किताब लिखेगा मोटी।
पर होकर ज्ञानी तू महीन
पैना मत हो जाना
प्रेम के ढाई आखर से बड़ा न कुछ
यह अटल सत्य न भूल जाना।
तब ही सफलता सच्ची होगी
तब ही मानवता की भली होगी।