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Pratibha Dwivedi

Abstract

5.0  

Pratibha Dwivedi

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खत

खत

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खत लिखना है फौजी को 

कहना है जब हम कड़ी धूप में

घर से बाहर निकलते हैं

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


जब कड़कड़ाती ठंड में

निकलती हूँ मैं घर से बाहर

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


हम घरों में चैन से सोते हैं

तुम रातों को भी पहरा देते हो

जब हमको जागना पड़ता है

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


तुम लहूलुहान होकर भी

मेदानेजंग में दिलेरी से लड़ते हो

जब चोट कभी हमें लगती है

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


हे ! जाँबाज तुम्हें नमन "प्रतिभा" का

खौफ नहीं तुमको खतरों का

गर डर कभी हमको सताये तो

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


तुम वतन के रखवाले हो

तुम पर आँच कभी ना आये

गर खतरा तुम पर मँडराये तो

उम्र हमारी तुमको लग जाये ! 


तिरंगे में जान बसे तुम्हारी

तिरंगा ही है शान तुम्हारी

जब तिरंगे में लिपटकर जाते हो

तुमको दिल से सलाम निकलता है !


रुंध जाता है गला हमारा

जब कोई फौजी जांन गँवाता

तुम रहो सलामत वतन की खातिर

पैगाम ये दिल से निकलता है।


मरकर भी अमर कहलाने वाले

तुमको सलाम दिल से निकलता है !

तुमको सलाम दिल से निकलता है !


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