खंडहर
खंडहर
खाली पड़े वर्षों से किसी खंडहर की तरह हूँ मैं ...
जिसमे एक बार फिर से बसेरा हो भी जाये तो भी कबूतर अपना आना जाना नहीं छोड़ते.
मैं खुश भी हूँ इसी तरह बेरूख और बेजान सी हो कर....
क्योंकि अच्छा लगता है यूँ सिर्फ खुद मैं ही सिमटना..
जिंदगी,प्यार,मोहब्बत,अहसास,वाकिफाना, अधूरापन, दीवानापन सब. सबकुछ अच्छा ही तो था तब।।
पर आज सिर्फ और सिर्फ लफ्ज़ ही हैं।
इस खंडहर का पता कोई पूछे तो बताना मत,,,
इस खंडहर का पता कोई पूछे तो बताना मत,,,
क्योंकि मैंने कइयों से सुना है आशिक यहाँ आकर
अपने महबूब को सिगरेट के कस में उड़ा दिया करते हैं।
ये खंडहर अब खुश है,,,
ये जो मकड़ियों ने मेहनत करके लड़ियाँ पिरोयीं हैं,
ये जो धूल के एक एक कण ने फर्श को रंगा है,
ये जो कीड़े मकोड़ों की आवाजें संगीत दे रही हैं,
ये खंडहर अब खुश है....
हाँ, ये अब सच में खुश है...
खुश है अपनी उस दुनिया को छोड़कर जहाँ हर सुबह मंदिर की घंटियों से दीवारें कांपती थीं,
जहाँ हर सुबह धूल के एक एक कण को फर्श से दूर किया जाता था,,,
जहाँ हर सुबह मकड़ियों की मेहनत को जला दिया जाता था,,,
अब ये खंडहर बहुत खुश है!
अब यहाँ दीपक की रोशनी परेशान नहीं करती दीवारों को।
अब यहाँ बच्चे खेलते खिलखिलाते नहीं,,,,
अब तो यहाँ रातों में पंछियों का बसेरा है,।।
वही पंछी जो बाहर की दुनिया से सहम कर यहाँ आये हैं।
ये खंडहर इन्हें सुला रहा है अपनी गोद में।।
