खौफ खा ऐ जिंदगी
खौफ खा ऐ जिंदगी
खौफ खा ऐ जिंदगी बदलने लगी है तू अब
मेरे उजड़े हुए से बगीचे मे दखल देने लगी है तू अब I
वो आँगन रहा नही मेरा, जहाँ तू हुक्म चलाया करती थी
जहाँ फूलों की पत्तियों से महकती, पेड़ों की टहनियों से चटकती थी I
उन मिटटी की गलियों मे जब पानी बन बह जाया करती थी
वो शाम की धूप सी चित्रकार मेरे आंगन में ठहर जाया करती थी I
वो आँगन नहीं, वो शाम नही, बस तू और तेरी यादें हैं
बदल गयी मौसम ऐ फ़िज़ाएं, बदल गयी हैं वो वादियाँ अब I
खौफ खा ऐ जिंदगी बदलने लगी है तू अब
मेरे उजड़े हुए से बगीचे मे दखल देने लगी है तू अब I