कहाँ हूँ मैं!!
कहाँ हूँ मैं!!
आज सुकून से बैठ कर मैंने
अपने रिश्तों की गठरी खोली
माँ बाप भाई बहन
जीजा भाभी सास ननद।
ससुर जी थोड़ा तन कर आये
साथ में पतिदेव भी आये
देवर देवरानी नाना नानी
बुआ फूफा दादा दादी
मौसी मौसा मामा मामी
जेठ जेठानी काका काकी
सब अपने यहीं मेरे साथ है
पर और कौन रह गया बाकी !
हर रिश्ता मेरे पास है
हर कोई मेरे लिए खास है
फिर क्यों मैं बेचैन हो रही
किसकी कमी मुझे यूँ खल रही
इस गठरी में हर रिश्ता है
बहुत सहेज कर मैंने रखा है।
पर इस गठरी में "मैं" नहीं हूँ
क्या मेरा खुद से कोई रिश्ता नहीं ?
क्यों इतना खो गयी हूँ दुनिया में
क्यों खुद से खुद का रिश्ता भूल गयी !
