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Ajay Prasad

Abstract

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Ajay Prasad

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काश

काश

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कभी कभी मैं सोचता हूँ

आसपास जानवरों को देख कर

काश ! मैं भी आदमी न हो कर

अगर जानवर होता

तो कितना बेहतर होता।


न भूत-भविष्य की चिंता

न वर्तमान से खफ़ा।

न धर्म, न जाति, न कोई रंगभेद

न ऊँचे का दंभ न नीच होने का खेद।

न करता किसी की चापलूसी

न किसी से किसी की कानाफूसी।


न ओहदे का अहंकार, न कोई भ्रष्टाचार

न रैली, न चुनाव, न वोट, न कोई सरकार।

न धन की लालसा, न छ्ल, कपट प्रपंच

न नेता, न अफसर, न मुखिया, न सरपंच।


न रिश्तों में खटपट, न रिश्तेदारी की झंझट

न नौकरी, न व्यापार, न पढ़ा-लिखा बेरोजगार।

न फ़ैशन की चाह, न लोक लाज़ की परवाह

न ख्वाहिशें, न फ़रमाइशें, न ज़ोर,न आज़माइशें।


न सुख में इतराना, न दुख में आँसू बहाना

हर दिन, हर हाल में बस अपने दम पर जीना।

कुदरत के करीब, न कोई अमीर, न कोई गरीब

न है कोई खुशनसीब ,न है कोई बदनसीब।


सब जी रहे हैं जो भी पैदा हुए जिस हाल में

न सजदे, न शिकायतें, न किसी भी मलाल में।


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