जज़्बातों का समंदर
जज़्बातों का समंदर
जज़्बातों के समंदर मैं उतरना भी जरूरी था।...
दिल में बड़ी सी उलझन,
जो छाई हुई है, ये जज़्बातों का समंदर बड़ा नशीला था।
हमने पाँव क्या रखा उफ्फ..हम तो उतरते गए,
तो याद आया की जज़्बातों के समंदर मैं उतरना भी जरूरी था।
क्या करे जनाब हम आपकी चाहत में बावरे हो गये हैं, आपकी शरारतें,
आपकी बातें, आपकी शरारतें सर आँखों पर,
महोतरमा हमको यूं न सताया करो, अपनी पलकें
संभालकर रखे, आपकी पलकों से अब डर सा लगने लगा है,
अपने दिल की बात छुपाना ये तो बड़ी गलत बात है,
बात बात से याद आया की एक दूजे को यूं छेड़ना भी जरूरी था।
याद है तुमको, जब पहली -बार, हमारी मुलाकात हुई थी,
बातों के बवंडर में बीन बोले, सब कुछ कह गए,
तेरा मेरा साथ यूं ही बरकरार रहे, ये दुआ हमारी रब से,
तुमसे इस तरह जुदाई मिले ये दिन कभी न आए,
ये दिल की आदत जो हो गई है, ये जज़्बातों का बवंडर में उतरना भी जरूरी था।
एक दिन पागल कर के ही छोड़ोगे।
हम गिरते गिरते संभल गए, ये जज्बात का पैगाम था, या आँखों का करिश्मा
कोई हमें समझाए ?
आपके ख्यालों मैं
खो जाना हमें अच्छा लगता है, कोई आपका नाम लेता है, तो पराया भी
अपना सा लगता है,
पर क्या करे, कैसे बताए,
शब्द न है, शायरों से शब्द
उधार जो लेने है, तेरे मेरे
दरमियाँ, उफ्फ...ए
जज्बात का सिलसिला इस दिल को भा गया है,
तेरे बिना जीना अब सजा
सा लगने लगा है,
क्या करे, हम खुद को भी
भूल गये है, आपके प्यार मैं बे इन्तहा डूब ही गये हैं,
बहुत सोचने के बाद याद आया जज़्बातों में यूं ही खुद को जलाना भी जरूरी था।

