जल ,प्रकृति और पर्यावरण
जल ,प्रकृति और पर्यावरण
तपती धरती
चढ़ता सूरज
हरियाली को जलाती
भस्म करती
भूख
इस भूख में हम भूल गये
तन को जलाती
धूप
आज कहीं
खो गया है
वो मिजाज़
वो प्रयत्न
हरियाली का
हरियाली की
इतिश्री हो रही है
केवल
बातों में,कविताओं में,
और
लग रहे हैं वृक्ष
कागज़में
चल रहे अभियान
कार्यालयों में
मंत्रीजी के
भाषणों में
सन्गोष्ठियों और परिचार्याओं में
जब कि आज
समय है
आसमान से
धरती पर उतरने का
धरती के लिये
जमीनी स्तर पर
कुछ करने का।
