STORYMIRROR

Ishan Ahmad

Abstract

3  

Ishan Ahmad

Abstract

जल ,प्रकृति और पर्यावरण

जल ,प्रकृति और पर्यावरण

1 min
277


तपती धरती 

चढ़ता सूरज 

हरियाली को जलाती 

भस्म करती 

भूख


इस भूख में हम भूल गये

तन को जलाती 

धूप 


आज कहीं 

खो गया है 

वो मिजाज़

वो प्रयत्न 

हरियाली का 


हरियाली की 

इतिश्री हो रही है 

केवल 

बातों में,कविताओं में,

और 

लग रहे हैं वृक्ष 

कागज़में 

चल रहे अभियान 

कार्यालयों में 

मंत्रीजी के 

भाषणों में 

सन्गोष्ठियों और परिचार्याओं में 


जब कि आज 

समय है 

आसमान से 

धरती पर उतरने का 

धरती के लिये 

जमीनी स्तर पर 

कुछ करने का।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract