बसंत
बसंत
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पीपल की कोंपल निकल रही हैं
टेसू भी मुस्काया है
गेहूँ की बाली गाभिन है
यूँ आकर बसंत मदमाया है
लगाओ गुलाल और
खेलो होली
प्रकृति का संदेशा आया है
वृक्षों ने गिराकर पत्ता पत्ता
फ़िर से जीवन पाया है
पवन में महक है फूलों की
रवि मुँह धोकर आया है
जिधर भी देखो आशाएँ हैं
उम्मी दों का मौसम आया है
चिड़ियाँ और भँवरों ने मिलकर
गीत प्रेम का गाया है
परदेसी पक्षी ले रहे विदाई
मौसम विवाहों का आया है
कभी बसंत है कभी है सावन
आयीं पूस की लंबी रातें
ज्येष्ठ के लंबे तप्ते से दिन
इस तरह प्रकृति ने हर मौसम का
मज़ा हमें चखाया है।