जिंदगी
जिंदगी
कितने से ख़्वाब उसने थे देखें
ज़िन्दगी में कुछ बनने को लेके
बनना वो चहता था कुछ अनोखा
दुनिया के भीड़ में वो था अनूठा
पापा के प्यार और माँ का दुलार
लेकर वो निकला अपने सपनो की ओर
करने लगा मेहनत दिन और रात
पुरा करने अपने सपनो की उदान
हर रोज़ करता था कुछ नया
जिसमें बेशक वो हारता था कई दफा
हार कर भी मेहनत उसने ना की कम
हौसला रखे बढ़ाता रहा हर कदम
मंज़िल न थी उसकी उतनी सरल
जितना लोगो को लगता था एकसर
दुनिया के ताने से बेअसर
करता था वो अपना काम से काम हर दम
ना दुनिया की फिक्र
ना असफल होने का का डर
करता रहा मेहनत हर दम
पुरा करने अपने सपनो को साकार
आखिर में बन ही गया
वो जो चाहता था बनने को
दुनिया से न्यारा
सबसे अलग
आखिर दिखा ही दिया उसने
न्यारा ही सही
अलग ही सही
ज़िन्दगी तो हम भी जी सकते है
जैसा हम चाहे
आखिर जिंदगी तो हमारी है
किसी और की जायदाद तो नहीं।