दास्तान-ए-दोस्ती
दास्तान-ए-दोस्ती
पता नहीं कैसे-कब हम मिले
न जाने कब हम इतने अच्छे दोस्त बने
कि आज एक पल भी तेरे बिना अधूरा लगे
जेसै जेरी बिना टोम अधूरा लगे।
नहीं बाते होती तुझसे महीनो तक
फिर भी न जाने कैसे हम एक दूसरे से जुड़े
बिना बातें किए तुझसे हर बात करुं
जैसे दिल से दिल का कोई तार जोड़ूँ।
कभी किसी से भी इतना अपनापन न पाया
जितना तुने मुझे अपना बनाया
डर लगता था जिन रिश्तों से
आज उसीने मुझे तुझसे मिलाया।
हर रोज करूँ इबादत तेरे लिए
कि कभी खो ना दूं तुझे
क्योंकि खुदा ने भी
कैसा ये रिश्ता बनाया।
खून का न होते हुए भी
तुझे अपना बनाया
नोबिता डोरेमोन जैसा
न तो कोई रिश्ता
फिर भी मेरी जिंदगी में
हो तुम कोई फरिश्ता।
हर रोज नहीं होती मुलाकात हमारी
फिर भी जब भी दिल से तुम्हें याद करूँ
तुझे में अपने पास पाऊं
खुदा से हर दम ये दुआ मांगूँ
कि कभी तू हो न जाए मुझसे जुदा।
पता नहीं कैसे-कब हम मिले
लेकिन अंजान हो कर भी
आज तुम मेरी जान बन गए।