ज़िन्दगी से सवाल
ज़िन्दगी से सवाल
आज ज़िन्दगी ने कुछ सवालों के कठघरे में ला
खड़ा किया, क्यों ज़िन्दगी से दूर हो रहे हो।
यूं खुद को क्यों खो रहे हो
यूं खुद को पहचाने से हिचकिचा क्यों रहे हो।
यूं मसरूफ होने के बहाने देकर दूर हो रहे हो
किस बात का गम से मगरुर हो रहे हो।
खुद की काबिलियत को नजरंदाज ना करो
अपनी ताकत को बदसलूकी की चादर ना ओड़वाओ।
गीदड़ की ज़िन्दगी से भली शेरों की ज़िन्दगी है जनाब
डरने से अच्छा है डराना शुरू करो जनाब।
अपनी कहानी का शीर्षक बन कर पूरे छा जाओ जनाब
यूं ही नहीं कशितियो को साहिल का सहारा मिल जाता है।
जीने के लिए माझी को तूफानों से किनारा मिल जाता है
हम खुद को पहचाने की ताकत रखते है।
खुद को आईने में निखार आते हैं
हौसले बुलंद कर के यू ही नहीं लौट आते हैं।
खुद की खवाहिशों को
ओरों की नज़रों के तराजू में ना तोलो।
खुद पर रहम करो,
खुद की नज़रों में ना गिरायो।
दूर कर रहे हो खुद को
ज़िन्दगी की खुशियों से।
ज़िन्दगी बाहें फैलाए तुझे पुकार रही है
तेरी नज़र उसको उझोल कर रही हैं।
यूं न कर ज़िन्दगी से
ये ना हो ज़िन्दगी के साथ
उम्र का पड़ाव ही ना रहे।
पीछे मुड़ के देखे तब
जब ज़िन्दगी की कहानियों का
कुछ और ही मोड़ हो जाए।
ना तू तू होगा ।ना तेरा सरूर होगा
तेरा अस्तित्व तेरा है
किसी और का केसे होगा।
तेरा वक़्त तेरा है, किसी और का कैसे होगा
खुद को ना बांट ज़िन्दगी जीने के लिए।
अपनी खुशियों को पहचान जीने के लिए
ज़िन्दगी की रफ्तार के साथ चल जीने के लिए।
खुद की पहचान की ऐसी
छाप छोड़ जीने के लिए।
यूं ही ज़िन्दगी का नशा
चखले जीने के लिए।