जब तुझे पाने की कोशिश की ,
दिल संभलने लगा .....
तेरे - मेरे रिश्ते को समझ कर ,
और जलने लगा |
तुझसे दूरी बनाने की ,
तब एक ज़िद सी चढ़ी ,
क्या सही क्या है गलत ,
ये और समझने लगा |
बहुत नादान था ये जो कभी ,
तेरी बातों पर कर बैठा एतबार ,
सोचा था इसने कि मिलेगा ,
an style="-webkit-tap-highlight-color: transparent; font-size: 16px;">इसे यहीं सच्चा प्यार |
मृग तृष्णा के भरम में ,
ये उलझता ही गया ,
तेरी बातों के नशे का ,
स्वाद चखता ही गया |
गहरे ज़ख्म पर मरहम लगा के ,
इस दिल का घाव भरने लगा ,
जब तुझे पाने की कोशिश की ,
दिल संभलने लगा ||