जब कभी उड़ो तुम
जब कभी उड़ो तुम
जब कभी उड़ो तुम
धारा के विपरीत
दम जरा ज्यादा भरना
जब कभी ठान लो तुम
सच्ची बात कहना
जरा ज्यादा मजबूत कलेजा रखना
क्योंकि मेरे दोस्त
अपनी राह खुद गढ़ने वालों को
नहीं मिलते कहीं नींव के पत्थर
कहीं सफर में छांव
कहीं घड़ी भर दम
कहीं जी भर दुलार
उसके रास्ते का नहीं होता कोई कम्पास
ऐसे में अगर कभी भटक जाओ,
मेरे दोस्त,रास्ता मत पूछना !
क्योंकि जिनसे तुम्हारा सामना होगा
उनकी पैरहन फरिश्तों जैसी होगी
जिसमें छुपे होंगे उनके बाघनख
वो नहीं लिए होंगे
भाले बरछी तीर
और वो तुम पर
सामने से हमला भी नहीं करेंगे
ये दौर थोड़ा नया है
वो तुम्हें मारेंगे नहीं,
पर जिंदा भी नहीं छोड़ेंगे।
वो बिल्कुल भी नहीं करेंगे अट्टहास ।
इसलिए जब कभी
धारा के विपरीत निकलो
अपनी दृष्टि ख़ूब मांज लो
क्योंकि इस सफर में
केवल वही है तुम्हारा हथियार।
(सुशांत सिंह राजपूत के दुःखद निधन पर)