जैव विविधता
जैव विविधता
धरती का कोई भी जीव हम इंसानों से न डरे।
ये धरती सबकी है, इसपर हक़ सबका रहे।
सींग - खाल के लोभ से परे,
जीवित प्राणियों से भी स्नेह रहे।
तेंदुओं को कोई शौंक नहीं इसानों की बस्ती में आने का,
बशर्ते बस्ती का इंसान भी अपनी खींची सीमा में रहे।
उन्हें छज्जों में जगह तो देनी ही होगी,
दरख़्तों में जिनके अब घरौंदे न रहे।
हमारे कुकर्मों की सज़ा अब
बेचारे निरीह प्राणी भी झेल रहे।
सच से वाक़िफ़ हैं हम सब के सब, फिर भी
एकाध पशु पाल घर में पशुप्रेम का छलावा कर रहे।
बिगड़ा नहीं है अब भी बहुत कुछ,
ये धरती सबकी है- बस ये याद रहे।
हाथों में हाथ डाले जल - थल - नभ,
जैव विविधता का ये चक्र चलता रहे।
