बाबुल की दहलीज़
बाबुल की दहलीज़
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चल बहना तेरा वक्त हुआ,
अब बाबुल के आँगन से तुझे जाना होगा।
तुझसे नहीं अपनी कोई रुसवाई,
बस! दुनिया की रीत है, निभाना होगा।
सारी दुनिया बसाने वाले हम मर्दों को,
घर बसाने का सलीका न आया होगा,
शायद इसलिए यह मुश्किल ज़िम्मा,
तेरे नाज़ुक कंधों पर आया होगा।
हम तो पल भर में ही मर जाएँ माँ के बिना,
पता नहीं माँ ने ये 'हुनर' कहाँ से लाया होगा।
अब से इस तुलसी को भी,
तेरे बिना हरा रहना सीखना होगा।
इसे किस्मत का लेखा समझ,
जो जहाँ है, वहीं ख़ुश रहना होगा।
भींगते थे हर साल हम इस दहलीज़ पर,
सोचा ना था एक दिन,
ये तेरे अश्कों से भींग रहा होगा।
अब बस कर, चुप कर, जल्दी चल बहना,
तेरे इंतजार में आज वो परिवार भी,
हमारी ही तरह दहलीज़ पर खड़ा होगा।
