जादुई घड़ी
जादुई घड़ी
मुझे मेरा बचपन जब याद आता है ये दिल बड़ा सुकून पाता है
अभावों में गुजरा था बचपन फिर भी खुश रहता था मन
घर में कोई घड़ी नहीं थी
माता-पिता धूप देखकर ही समय का अनुमान लगा लिया करते थे
रात को आसमान में तारे देखकर ही तिथि वगैरह बता दिया करते थे
परीक्षाओं का समय जब आता था तो हम बड़ी चिंता में डूब जाया करते थे
स्कूल जाने को कहीं देर ना हो जाए सोच सोचकर कर घबराया करते थे
सब समस्याओं का एक ही समाधान था तब
बचपन में एक ही ब्रह्मास्त्र होता है और वह है, मां ।
हमने भी मां को अपनी परेशानी बयां कर दी
मां ने चुटकी बजाकर हमारी समस्या हल कर दी
कहा, मैं खुद एक जादुई घड़ी हूं स्कूल की चिंता मत कर
टाइम पर जगा दूंगी और भेज दूंगी समय पर
ना जाने कौन सी जादुई घड़ी थी उसके पास
कभी लेट नहीं हुआ पता नहीं कौन सी शक्ति थी उसके पास
अब तो अनेक घड़ियां हैं घर में छोटी बड़ी ,जानी मानी
मगर सबसे ज्यादा विश्वसनीय है वो जादुई घड़ी है मेरी रानी
गजब का टाइम मैनेजमेंट है घड़ी उसके दिमाग में चलती है
एक एक मिनट के हिसाब से वह सारा प्रबंध करती है ।
मुझे लगता है कि भारतीय नारियां जादुई घड़ियां होती हैं
अपनी टिक टिक से ही पूरे घर को चलातीं रहतीं हैं ।
ये हैं तो घर है वरना धर्मशाला सा लगता है
स्त्री के बिना जीवन नर्क सा लगने लगता है
इनकी जादू की झप्पी से ही सांसें चलती हैं हमारी
इनके पास जादू की छड़ी है जिससे छूमंतर हो जाये परेशानी सारी।