इश्क का पाठ
इश्क का पाठ


न जाने सुहानी सी डगर
तुम मिली तो मगर
वो चमन सा बहार
वो हल्की बूंदों की बौछार
वो अपनो का एहसास
न जाने सुहानी सी रात
मानस के मानस की आवाज
तुम बन गई इश्क का एहसास
न जाने सुहानी सी रात
हम बुलाते रहे, तुम छुपते रहे
तुम हँसते रहे, हम सुलझते रहे
तेरी मुस्कान रही, मेरी पहचान रही
न जाने मेरा अरमान रहा
तेरा एहसान रहा
न वो रात रही, न वो बात रही
रही तो एक सुहानी रात रही।