हवा का झोंका
हवा का झोंका
बड़ी जोर से किसी ने खिडखडाई खिडकी ।
मैं ने भी होले से परवा की खिडकी खोलने की ।।
बड़ी जोर से अंदर आने की ज़ुर्रत कर रहा था
एक छोटा मोटा हवा का झोंका ।
मैं ने बड़ी सख्ती से कर दिया मना अन्दर आने से ।।
अरे ! तु कहीं और जा, ।
मैं डुबी थी “ उनके “ खयालो में ।
तू ने यूहीं मुझे जगा दिया "उनके" खयालो से ।।
वो फ़िर भी अंदर आने लगा, सून ले मेरी जुबां ।
मुझे कोई सूननी नही तेरी ये ऐसी वेसी बाते ।
जगा कर सपनो से जुदा किया "उनसे " ।।
वंद करने लगी खिडकी, ओ गिडगिडाया ।
हवा का झोका हूं मैं यु ही चला जाता,
पछताना तुझे सुना नहीं मुझे तों ।।
चल बता, देर नहीं करना जाना मुझे “ उनके” सपनो में ।
फिर ढूढ
ना पडे कहा कहा उसे वादियो में ।।
“छु कर आया हूं उनको “ फिर क्यूँ जाना तुझे वादियो में ।
छु लिया “उनको “ ठहरा ऐक पल भी नहीं कोई खबर लेने ।।
सहसा ही मैं ने लिया उसे अंदर ।
सांस में भर लिया, गले से लगा लिया ।
रूह में समा लिया, कर दिया दिल में केंद ।।
चहेंकती, गुन गुनाती, यूहीं मुस्कराती ।
मैं लगी झूला जूलने ।।
वो फिर लगा मचलने ।
अब क्या है तुझे ।।
अरे ! छोड तो मुझे, फिर कहीं जाना मुझे ।
गुना बता मुझे, क्यु केद किया तुझेमे ।।
अरे ! तेरी गुनेगारी इतनी, ज़ुर्रत तेरी " उसे " छूने की ।
सजा अब तुझे, मेरी सांसों तक रहना मुझमें ।
वो भी ज़रा ज़रा मुस्कराता, डालने लगा आदत, मेरे भितर रहने की ।।