हमारी हिन्दी
हमारी हिन्दी
हिन्दी ओ ! मेरी भाषा
तू चिऱ पुराण तू चिर नवीन
नित नव यौवन से आच्छादित
जन जन की वाणी में क्रीडा कर
नित नई कहानी कहती तुम
भाषा के हरिश्चन्द्र,
तेरे मस्तक की शोभा हैं ।
अज्ञेय की कविता ने तुझको,
एक नया कलेवर दे डाला ।
तेरे वैभव का परचम तो ,
चंहुओर निराला ने फहराया।
मैथिलीशरण की यशोधरा ,
तेरे वैभव में विकसित होती है।
या हो प्रसाद की कामायनी,
अभिषेक प्रभा की धारा से
नित नूतन गीत सुनाती है ।
तेरे वर्णों का आश्रय ले महादेवी ने
कई रेखाचित्र खींच डाले ।
तेरे रंग रूप की कूची से
नित नव श्रृंगार प्रकृति का
कर डाला सुमित्रानन्दन ने ।
अपने अंचल की हर बोली
अपनी मां के आगे नतमस्तक है ।
मानस हो तुलसी का
सूरसागर सूरदास का हो
दोहे कबीर रहीम के हो
देते सदा सीख सबको
आंचल की छाया ले तेरी
मां भारती का वैभव लिखने को
नित नए कवि जन्मते हैं
तेरे वैभव की स्याही में
अपनी कलम डुबोते हैं ।