हम जात-पात और गोत्र मिलाते मिलते हैं
हम जात-पात और गोत्र मिलाते मिलते हैं
संत मेरी नाम के शहर के, खान गली में, हम एक राम मंदिर बनवाते हैं|
सिंघासन पर फिर बैठ, अरे वो क्या कहते हैं, हम secular कहलाते हैं|
हम तो राजनीति के वो बशिन्दे हैं, जो आंख मून्द कर चलते जाते हैं|
सरकार, हम तो वोट का बटन भी surname पद़ कर दबाते हैं|
कौन से रंग के फूल मिट्टी का धर्म पूछकर खिलते हैं,
पर हम, हम तो जात पात और गोत्र मिलाते मिलते हैं|
मिलने कु दिल मिल गये , मिलने को जहा मिल गये,
पर खुद की शादी तो caste में ही रचाते हैं|
राम ने शबरी के झूटे बेर खा लिये,
हम प्यासे को पानी भी जात पूछकर पिलाते हैं|
हम धर्म की चादर ओद़कर , अपने खोखले सिद्धांतो से कब हिलते हैं|
हां भाइ , हम तो जात पात और गोत्र मिलाते मिलते हैं|
हम तो वो हैं, जो महिलाओं को प्रताड़ीत कर मन्दिरो से दूर भगाते हैं,
फिर दिखावे दिखावे में , मूर्ति बनवाकर उसकी ही पूजा करवाते हैं|
हम तो वो हैं, जो गाय को माता बनाकर , इन्सां की किस्मत की रोटी, कुत्तो को खिलाते हैं|
हम क्यों नही दिल के दरारो को, दिल की ही अवाज़ो से भरते हैं,
चलो, छोरो , हम तो जात पात और गोत्र मिलाते मिलते हैं||
