हिंदी
हिंदी


कहीं सहज सरल सुंदर सी समरस,
कहीं जटिल कठिन संस्कृत निष्ठ क्लिष्ट
कभी हृदय हरण कर जाती है,
कहीं साहित्य सृजन कर जाती है
लेखक का विचार बनीं कहीं,
कभी कवि की कल्पना कहाती है
प्रेम प्रतिष्ठा राष्ट्रभक्ति से होकर,
समरसता का भाव जगाती है
सिंधु से लेकर सागर तक
एक सुत्रता का आभास कराती है
किंचित इसीलिए यह यहां माँ सी पूंजी जाती है,
जब बात विविधता में एकता की हो,
तो हिंदी है याद आती है
हां हिंदी ही याद आती है।