हिन्दी की आशा
हिन्दी की आशा


राजभाषा माह का जब इनआगरेशन हुआ,
कुछ इस तरह से उसमें भाषण इक हुआ।
हिन्दी है मदरटंग इसे लर्न कीजिये,
इसकी डेवेलपमेंट की ओथ लीजिए।
ईजी बहुत है, बस थोड़ा इनिशिएटिव लीजिए
स्टार्ट तो कीजिये, मत हेजीटेट कीजिये ।
सुनकर ये सोचा हाय कैसी हिन्दी हो गयी,
अंग्रेजी की मार से चिन्दी चिन्दी हो गयी।
चिन्तन मैं करने लगा, क्या यही है राजभाषा,
देश को एक सूत्र में पिरोने की है जो आशा।
सोच में डूबा देख, हिन्दी स्वयं मेरे पास आ गयी,
मंद मंद मुस्कराती, मुझे कुछ यूं समझा गयी।
अधीर न हो, विश्वास रखो, समय बदल रहा है,
जन जन मुझे अपनाने हेतु मचल रहा है।
अंग्रेजी के शब्द सुन, क्यों मेरी प्रगति झुठला रहे हो,
हिन्दी दिवस से बढ़कर, राजभाषा माह मना रहे हो।
अस्तित्व है मेरा पनप रहा, तुम सबका प्यार पाकर,
वो समय है शीघ्र आ रहा, कह दो ये सबसे जाकर।
दिवस नहीं, मास नहीं, पूरा वर्ष हिन्दी पर्व होगा,
मेरा प्रयोग करके, हर भारतवासी को गर्व होगा।