हे हरि तेरे द्वार पे हूं , किवाड़ खटखटाएं कैसे।।
हे हरि तेरे द्वार पे हूं , किवाड़ खटखटाएं कैसे।।
भरी है कालिख
दीप जलाऊं कैसे
हे हरि तेरे द्वार पे हूं
किवाड़ खटखटाएं कैसे।।
कुछ मुझे नहीं छोड़ती
कुछ मैं नहीं छोड़ पाती
क्रोध, अज्ञानता, बेसब्री
भरे नयन
तेरा दर्शन कैसे पाऊं
हे हरि तेरे द्वार पे हूं
किवाड़ खटखटाएं कैसे।।
एक प्यास है तुम्हें जानने की
एक आस है तुम्हें पाने की
पर फैला यह भ्रम जाल
मैं और मेरा
जीत-हार-जीत की लत से
बच कर
तुझमें खोने का आनंद पाऊं कैसे
हे हरि तेरे द्वार पे हूं
किवाड़ खटखटाएं कैसे।।
