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NIYATI PATHAK

Tragedy Others

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NIYATI PATHAK

Tragedy Others

हाँ मैं नारी हूँ !

हाँ मैं नारी हूँ !

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हर रूप में हर रिश्ते में

हर कर्तव्य निभाती हूँ

है मैं नारी हूँ,

फिर भी अबला बोली जाती हूँ,

काया है कोमल मगर

हौसले बुलंद है,

जो सपने खुद के लिए देखे थे

वो अब भी बेड़ियों में बंद है

जिम्मेदारियों के पर्वत फिर भी

निष्ठा से उठाती हूँ,

हाँ मैं नारी हूँ,

फ़िर भी अबला बोली जाती हूँ!


वो बेटे है,

उनको पढ़ना हैं लिखना है

हर तरह से काबिल बनाना हैं

मेरा क्या है,

मुझे तो ब्याह के मंडप तक ही जाना है

बेटों कि ज़िद, उनके शौक

इनमें कौन कमी करता है

मेरा अस्तित्व तो कहीं किसी आंगन में

घूंघट के नीचे पलता है,

संसार सृजन का दायित्व मुझ पर

फिर भी नवजीवन धरती में लाती हूँ,

हाँ में नारी हूँ.....


वो लड़कों को स्वछंद विलासी बनाते हैं

पर मुझे पैरो में मर्यादाएं बताते है !

फिर भी धैर्य रखती हूँ

फिर से सपने बुनती हूँ,

वे पुरुष हैं, उन्हें न कोई रोके ...

मैं नारी, समाज की निगरानी में रहती हूं

कंकरों से भरा है मेरा जीवनपथ

फिर भी सफलता के नए आयाम बनाती हूँ..


अभिलाषा जिसकी सबको है,

मैं उस ममता का सार हूँ...

निःस्वार्थ कर्तव्य परायणता का आधार हूँ,

कभी अग्नि परीक्षाएं,

कभी विरह की यातनाएँ,

त्रेता में सीता हूँ, द्वापर में द्रौपदी ,

हर युग मे कुरीतियों को आहार चुनी जाती हूँ,

हाँ मैं नारी हूँ !

दुर्गा और लक्ष्मी का स्वरूप कही जाती हूँ

पर परिवार में पीछे रह जाती हूँ,

फिर भी दोनो घर की लाज बचाती हूँ


रोकते हैं रिवाज़ मुझ को आडम्बर बनकर

फिर भी कहीं कल्पना, कहीं निर्ज़ा बन जाती हूँ


हाँ मैं इतिहास बनाती हूँ,

हाँ मैं नारी हूँ,

फिर भी अबला बोली जाती हूँ !



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