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SAURABH musafir

Abstract

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SAURABH musafir

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गुलशन

गुलशन

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जैसे किसी मुरझाये हुए,

सूखे गुलाबी फूल पर,

एक शबनम की मोती सी,

छोटी बूंद बन जाये !


जब ऐसा हो कि,

मेरे ये गर्म आँसू,

असहनीय दर्द का,

कीमती मरहम बन जाये !


जिसकी दुआ से कुछ मुझे,

मिलेगा इस क़दर ऐ खुदा,

जैसे बंजर जमीन पर,

कोई गुलशन बन जाये !


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