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Rehana khan

Abstract Fantasy Inspirational

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Rehana khan

Abstract Fantasy Inspirational

गर्मी

गर्मी

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गर्मी आई रे ,गर्मी आई रे, गर्मी आई रे, गर्मी आई रे 

 संग उमस ,तपन, आंधी ओर बूंदो की फुहारे लाई रे।


गर्मी आइ रे


 चंचल धरा का रूप बदलने आई रे ,

कहीं चटकती नई कलियाँ, तो कहीं तपन से जलती डालियाँ लाई रे ,


समय समय पर धरा करती अपना श्रृंगार मिलते उसे श्रतुओ के रंग हजार,

 लोग भी करते श्रतुओं का बेसब्री से इन्तजार ,

पर गर्मीयों का भी है अपना एक अलग, अन्दाज । 

आई रे गरमी आई रे 

गर्मी आई संग उमस तपन संग लाई रे, 


कहीं है गर्मी की छुट्टियों का आनन्द,

है परिवार और मित्रों संग घुमने का प्रबंध है , 

 कहीं है

ठण्डे मिठे रंग-बिरंगे शरबतो की बहार, 

तो कही समंदर किनारे आती लहरों संग ठंडी फुहार, 

गर्मी आई रे संग अपने कई रूप- रंग लाई रे।


कभी डराती गर्मी अपने प्रचण्ड रूप में,

कभी इतराती 

देती अती प्रकाश चिलचिलाती धूप से,

हो जाती ये घरा भी प्यासी

तरसाती इस घरा को प्यासी बूंद से ,

मानव भी करता अपने उलट -पलट प्रबंध बचता गरमी के रोदृ रूप से।


पर धरती का अपना एक उसूल सब ऋतुओं की चुनर ओढती ये ,

गृषम ऋतु संग भी अपना रंग निचोड़ती ये,

आई रे गरमी आई रे संग कई रंग सजा कर लाई रे।


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