बचपन बड़ा मासूम होता है
बचपन बड़ा मासूम होता है
बचपन बड़ा मासूम होता है
ना रात का पता ना दिन का मालूम होता है,
बचपन बड़ा मासूम होता है।
हजारों कोमल रंगों में रंगा ये बचपन ,
कभी मां के प्यार में पलता है तो कभी बाबा के दुलार में,
कभी दादी नानी की कहानियों में घूमता यह बचपन,
तो कभी दादा नाना के तजर्बों से सीखता यह बचपन।
कच्ची मिट्टी के घड़ों सा यह बचपन।
जिस लहर संग जाओ उसी संग बहता यह बचपन।
वो मां के हाथों से बना स्वादिष्ट डिब्बा, ओर सहेलियों संग बढ़ता स्वाद उसका,
सच
बड़ा मासूम होता है ये बचपन।
वो बाबा की सतर्कता, वो बाबा का लाड़
बड़े प्यार से, कंकरीले रास्तों से बचाते स्कूल छोड़कर आते,
वो गुरुजनों का सत्कार बदले में मिलता जो ढेरों आशीर्वाद।
शाला की कुछ नटखट नादानियां,
तो कभी अव्वल आकर इतराना।
सच
बचपन बड़ा मासूम होता है।
मन में छिपी कभी ढेरों आशाएं तो कभी ढेरों नादानियां बचपन बड़ा मासूम होता है
पल में चाहे तो रानी बन जाए तो कभी किसी का सहारा,
कभी गुड्डे गुड़ियों संग बीता वो बचपन तो कभी खिलौनों की खीर पूरियां,
बचपन बड़ा मासूम होता है।
कुछ बनकर उड़ने की लहरों में घूमता यह बचपन,
मन की उमंगों से खेलता यह बचपन
कभी मिट्टी के घरौंदे बनाता यह बचपन,
तो कभी पानी की फुहारों में रोशनी ढूंढता ये बचपन,
सच!
बड़ा मासूम होता है यह बचपन।
बड़ा मासूम होता है ये बचपन।
