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Richa Pitliya

Abstract

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Richa Pitliya

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ग़रीबी

ग़रीबी

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कल तक पर्दे में था

अब सब सामने दिखता है


टूट गयी दीवारें

अब सब दिखता है


एक आम इंसान जब

तड़प कर भूख से मरता है


आँसुओं को कैसे रोकूँ

जब दिल का ज़ख़्म रिसता है।


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