गलत फहमी के फर्श पर...
गलत फहमी के फर्श पर...
गलत फहमियों के फ़र्श पर
बड़े दिनों बाद मिले थे...
कितनी देर बैठे रहे,
बिना कुछ कहे।
जैसे ख़ामोशी की एक लंबी दीवार थी,
हम दोनों के बीच...
कमरा मानों वायु रुद्ध था,
दरवाज़ा, खिड़कियाँ
खुली होने के बावजूद...
कुर्सियां हम दोनों के बेजान से शरीर पकड़े हुए बैठी थी
किसी के आने की आहट से
खड़े हो के देखा,
आखिरी बार एक दूसरे की ओर...
बस तभी शायद किस्मत ने कहा,
"मिलने का समय खत्म हुआ"