ग़ज़ल
ग़ज़ल
भंग पीते हो सदा शिव पार्वती के सामने
घोलते हो भंग भोले तुम सती के सामने।
आपको प्यारा धतूरा कण्ठ में विष धारते-
नाग तुम रहते लपेटे भगवती के सामने।
धारते बाघम्बरी हो मुण्डमाला है गले-
आप रहते बन के औघड़ शाम्भवी के सामने।
हे विधाता नीलकंठी आदि अविनाशी तुम्ही-
नाम शमशानी पड़ा है बैष्णवी के सामने।
है विनाशक नाम तेरा जग सदा यह मानता-
काल के ईश्वर बने हो भाविनी के सामने।
दैत्य सारे नाचते हैं आप ही के ताल पर-
आपने मारा जलन्धर मर्दिनी के सामने।
देव रक्षक नाथ हो तुम दुष्ट रहते पग तले-
मारते तुम दानवों को भैरवी के सामने।
दान देते हो सभी को कुछ न रखते पास में-
भक्ति का वरदान दो वाघातिनी के सामने।
भक्त को वरदान देते आप ही तो तारते-
है खड़ा द्वारे सचिन भवमोचनी के सामने।