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पं.संजीव शुक्ल सचिन

Abstract

2.5  

पं.संजीव शुक्ल सचिन

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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भंग पीते हो सदा शिव पार्वती के सामने

घोलते हो भंग  भोले तुम सती के सामने।


आपको प्यारा धतूरा कण्ठ में विष धारते-

नाग  तुम रहते लपेटे भगवती के सामने।


धारते  बाघम्बरी  हो  मुण्डमाला  है गले-

आप रहते बन के औघड़ शाम्भवी के सामने।


हे विधाता नीलकंठी आदि अविनाशी तुम्ही-

नाम शमशानी पड़ा है बैष्णवी के सामने।


है विनाशक नाम तेरा जग सदा यह मानता-

काल के ईश्वर बने हो भाविनी के सामने।


दैत्य  सारे नाचते हैं आप ही के ताल पर-

आपने  मारा  जलन्धर मर्दिनी  के सामने।


देव रक्षक नाथ हो तुम दुष्ट रहते पग तले-

मारते  तुम  दानवों को भैरवी के सामने।


दान देते हो सभी को कुछ न रखते पास में-

भक्ति का वरदान दो वाघातिनी के सामने।


भक्त को  वरदान देते आप ही तो तारते-

है खड़ा द्वारे सचिन भवमोचनी के सामने।


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