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पं.संजीव शुक्ल सचिन

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पं.संजीव शुक्ल सचिन

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चुनाव संहिता

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छद्म के ताबूत  में तुम, कील ठोको प्यार से अब, 

मिल गया मौका सुनहरा, फिर नहीं बकलोल बनना।।


पाँव  में  जिनके अभी तक, 

लोटते  तुम  फिर  रहे  थे,

हाथ  जोड़े  वे  खड़े  हैं, 

देख लो जी प्यार से तुम।

दे  दगा  तुमको गये, प्रण, 

भूल कर सुख भोग आये,

याद  कर  इनकी  वफा, 

इनको भगाओ द्वार से तुम।


मान पा मगरूर बनकर, कर  गये  तेरी  उपेक्षा,

कर अपेक्षा फिर उन्हीं से, मत उन्हीं के गोल बनना।

छद्म के  ताबूत में तुम, कील ठोको प्यार से अब, 

मिल गया मौका सुनहरा , फिर नहीं बकलोल बनना।।


है   तुम्हारे   हाथ  साथी, 

एक  मौका  अब  सुनहरा,

मखमली बिस्तर जो इनका, 

शूल  वाली  सेज  कर दो।

बिन किये आहट तनिक भी, 

गाल  पर  थप्पड़  बजाओ,

योग्यता   का  हो  चयन, 

अभियान थोड़ा तेज कर दो।


मांस  मदिरा  अर्थ आये, या कोई संबंध निज का,

मोह के मद अन्ध बन कर, अब नहीं तुम लोल बनना।

छद्म  के  ताबूत  में तुम, कील ठोको प्यार से अब, 

मिल गया मौका सुनहरा , फिर नहीं बकलोल बनना।।


दे  रहा   मौसम  चुनावी, 

है तुम्हें अवसर ये सुखकर,

पूर्व में किसने किया क्या, 

आकलन  कर  देख लेना।

स्वार्थ  के  वशीभूत होकर, 

कौन   आया   द्वार  तेरे,

वक्ष  पर  रख हाथ अपने, 

या  मनन  कर  देख लेना।


लोभ दे निज  लाभ लेना, रक्त में इनके समाहित,

निज प्रलोभन के लिए, इनका नहीं किल्लोल बनना।

छद्म के ताबूत में तुम, कील ठोको प्यार से अब, 

मिल गया मौका सुनहरा, फिर नहीं बकलोल बनना।।



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