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पं.संजीव शुक्ल सचिन

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पं.संजीव शुक्ल सचिन

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द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में

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मन भीतर जो तम फैला है, उसे मिटाओ मेरे साथी।

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी।।


        माया  है  ठगनी  ठगती  है, 

        शूर्पनखा बन करती है छल।

        मिथ्यामय  जिज्ञासाओं का , 

        करती उर संचय यह हर पल।


मृषा जनित लिप्सा मानस से, दूर भगाओ मेरे साथी।

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी।।


         उत्कण्ठा अघ से पूरित जो, 

         करती सत्यानाश मनुज का।

         स्थापित मनु मन में करती, 

         दुर्गंधित हर भाव दनुज का।


अपकर्मी अभिलाषा की अर्थी, आज उठाओ मेरे साथी।

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी।।


         असत पंथ को वर सुयोधन, 

         क्यो बनते हो नाहक तुम।

         सत्य धर्म से बनो युधिष्ठिर, 

         धर्म  ध्वजा संवाहक तुम।


पावन कृत्य हो चरित्र को अपने, चलो उठाओ मेरे साथी।।

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी।।


       द्वार खड़ा  सौभाग्य तुम्हारे, 

       करना मत इसका निरादर।

       ईश्वर ने जो कार्य है सौंपा, 

       माथ नवा कर उसका आदर।


मोह जनित अँधियार से निज को, परे हटाओ मेरे साथी।

द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी।।


          


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