ग़ज़ल
ग़ज़ल
बहिखातों ने खा डाले थे जिनके राई से सपने ,
बड़ी मुश्किल में थे मुफलिस, वो खाते भी तो क्या खाते ।
पनीली आँख से चिपकी हुई थी धुंध यादों की,
ज़रा सी उम्र लेकर वो जो जाते , तो कन्हा जाते ।
किसी की रात चादर सी , किसी का दिन हथौड़े सा ,
जिन्होंने खो दिया सब कुछ वो पाते भी तो क्या पाते ।
' फज़ल' तुम भी तो इंसा हो , तुम्हारे हाथ में क्या है,
ग़ज़ल की शक्ल रोटी से तो अच्छी कर नहीं पाते ।।