STORYMIRROR

abhishek mungi

Abstract

4  

abhishek mungi

Abstract

नज़्म

नज़्म

1 min
347

कुछ भी तो नहीं है लिखने को ,

पर रात अभी भी बाकी है . 

इक नज़्म छिपि है तारों में ,

जो चाँद से जा टकराती है l 

कुछ लफ्ज़ पहन कर निकला हूँ ,

मैं आज तुम्हारी महफ़िल में ,

कुछ लफ्ज़ ज़रा से गुमसुम हैं ,

कुछ लफ्ज़ ज़रा बेमानी हैं l

कुछ सूखे सूखे लहज़े हैं ,

इक मुरझाया सा मंज़र है ,

कुछ तो तेरा खालीपन है ,

कुछ लोगों की अय्यारी है l 

ये उम्र निहायत छोटी है ,

बस लम्हों में कट जाती है ,

इक नज़्म छिपि है तारों में ,

जो चाँद से जा टकराती है l



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract