नज़्म
नज़्म
कुछ भी तो नहीं है लिखने को ,
पर रात अभी भी बाकी है .
इक नज़्म छिपि है तारों में ,
जो चाँद से जा टकराती है l
कुछ लफ्ज़ पहन कर निकला हूँ ,
मैं आज तुम्हारी महफ़िल में ,
कुछ लफ्ज़ ज़रा से गुमसुम हैं ,
कुछ लफ्ज़ ज़रा बेमानी हैं l
कुछ सूखे सूखे लहज़े हैं ,
इक मुरझाया सा मंज़र है ,
कुछ तो तेरा खालीपन है ,
कुछ लोगों की अय्यारी है l
ये उम्र निहायत छोटी है ,
बस लम्हों में कट जाती है ,
इक नज़्म छिपि है तारों में ,
जो चाँद से जा टकराती है l
