ग़ज़ल
ग़ज़ल
क्या तुमको बताएं कि क्यों कर नहीं आया ।
वो अब के गया ऐसे, पलटकर नहीं आया ।।
कहने को मरासिम थे, पुराने बहुत उससे,
वो शहर तो आया था मेरे घर नहीं आया ।।
साहिल पे जो दुनिया ने यहां
ज़ुल्म किए हैं ।
यूं दाम पर वैसे ही समुंदर नहीं आया।।
एक रोज़ चला जाऊंगा सब, ताक पे रख के,
सब यार कहेंगे कि सिकंदर नहीं आया ।
क्या जाने 'फजल' , किसकी दुआ काम कर गई।
कि काम मेरे मेरा मुकद्दर नहीं आया।।