ग़ज़ल
ग़ज़ल
मेरा हम राही, हम नफ़स यूँ ही,
याद आता है हमको बस यूँ ही,
देखते ही हुए फ़क़त उनको,
हम बिता सकते हैं बरस यूँ ही,
गर उसे दिल भुला नहीं सकता,
तिश्नगी से तू फिर तरस यूँ ही,
क्या ये मुमकिन है तू मिले और दे,
देखने चेहरे का दरस यूँ ही,
शेर तुझ पे ही एक लिख लिख कर,
हो रहा जाया दस्तरस यूँ ही,
क़ैद तो आदमी ही करता है।
और बदनाम है क़फ़स यूँ ही।