STORYMIRROR

Naayika Naayika

Inspirational Romance

3  

Naayika Naayika

Inspirational Romance

कविता: संबोधन

कविता: संबोधन

1 min
28.4K


हवा में नहीं उछलते शब्द
जिसे पकड़ा और पिंजरे में कैद कर
स्वामित्व जता लिया।
हाँ बातें ज़रूर तैरती रहती हैं हवा में
जिसे आप लाख पकड़ कर
अपने अर्थों में गढ़ लो।
फिर भी वो हवा में स्वतन्त्र तैरती ही नज़र आएगी।

पुकारो ज़रा किसी नाम से
उस नाम सी हो जाएगी,
कुछ पल साथ चलेगी
और जिससे सबसे पहले टकराए
उसके पाले में चली जाएगी,
भागते रहो फिर दिन रात उसी के पीछे
हाथ नहीं आएगी।

उसे संबोधन देना बंद कर दो,
जैसे किसी को भी नाम से मत पुकारो,
उसे पुकारो उसके स्वभाव से,
उसके व्यक्तित्व से,
उसके अपने होने के सामर्थ्य से।
फिर आपको किसी को भी, कुछ भी
जकड़ कर नहीं रखना होगा।
वो आपकी स्वतंत्रता में ही घुल-मिल जाएगी।


बातें भी ऐसी ही होती हैं
संबोधन रहित,
उसे पकड़ कर पिंजरे में नहीं डालना होता है,
उसे मुट्ठी में भींच कर आसमान में उछालो
किसी बादल के फट जाने तक,
तब बरसेंगी बातें और जिसको जैसे भीगना होगा भीग जाएगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational