गांव गांव ना रहा
गांव गांव ना रहा
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गांव
के
भीतर
अब
शहर
घुस
गया
है
गांव
गांव
ना
रहा
शहर
भी
गांव
ना
हो
सका
गांव
में
अब
वो
कुछ
भी
नहीं
होता
जो
पहले
गांव
में
होता
था
गांव
की
वो
खुशबू
वो
महक
सब
खत्म
सा
हो
गया
वो
पोखर
वो
बगीचा
खेत
खलिहान
वो
बूढ़ी
दादी
उसकी
वो
कहानियां
वो
कआं
वो
फाग
वो
चौपाल
वो
बच्चों
का
खिलौना
गुल्ली
डंडा
कितकीत
सब
परिवर्तन
के
बयार
में
उड़
गए
है
साथ
हीं
साथ
वो
सारी
परंपराए
भी
उड़
गई
है
जो
पहले
गांवों
में
हुआ
करती
थी
गांव
बहुत
हीं
तेजी
से
शहर
की
ओर
भाग
रहा
है
गांव
गांव
ना
रहा।