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Ravi Ranjan Goswami

Abstract

3.4  

Ravi Ranjan Goswami

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फ़ितरत

फ़ितरत

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उम्मीद गिर के उठती है

तिश्नगी और बढ़ती है।

मौसम बदल जाते हैं,

बेमौसम बरसात होती है।

आसमान बुलाता है 

जमीं नहीं छोड़ती है। 

परिंदे उड़ते है छूने आसमान

बहुत दूरी होती है। 

आईना देखकर है हैरान। 

ऐसी क्या फितरत होती है?


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