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Ravi Ranjan Goswami

Abstract

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Ravi Ranjan Goswami

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जाड़े के मौसम में

जाड़े के मौसम में

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जाड़े की धूप 

किसे नहीं भाती है

पर वह शर्माती है।

जल्दी चली जाती है

ठिठुरन छोड़ जाती है

कभी बदली छा जाती है

सूरज को ढंक जाती है।

ठंड बढ़ जाती हैं ।

बदली कभी सूरज को,

बना लेती है कैदी।

मौसम सोचता है।

यह अवस्था कैसी?

जाड़े के दिनों मैं ,

सूरज की हालत भी ,

कभी होती है ऐसी।


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