एहसास
एहसास
इश्क चाहने वालो को, कहाँ आराम हैं
वो है नहीं अब यहाँ, पर उसके होने का एहसास हैं
वो जब छुना चाहते है, लब उनके बेताब हैं
जिस्म के हिस्सों को, उन लबों के होने का एहसास हैं
हाथों के निशान, अब भी रसोईघर में आबाद हैं
बर्तनों को उनके छुअन, होने का एहसास हैं
दराज में रखी किताब को,किस कलम का ख्याल है
जो गुलाब इश्क का रखा है, उसे सब एहसास है
मयख़ाना भरा शराब से, बोतलें हजार हैं
मेरे हाथ को न जाने, किस जाम का एहसास हैं।

