ए जमाने
ए जमाने
ए जमाने
थोड़ी नादान हूं मैं......
नहीं समझती तुम्हारी
चालाकियां, धोखे और बेरहमी....
हां, अपनी खुदपसंद तो हूं ही मैं...
ए जमाने
थोड़ी बेबाक हूं मैं....
नहीं समझती तुम्हारी तरह रेप के मामलों पर चुप रहना....
हां, आवाज उठाना जानती ही हूं मैं....
ए जमाने
थोड़ी सच्ची सी हूं मैं
नहीं समझती तुम्हारी तरह दो चेहरे लेकर चलना....
हां, ईमानदारी से ही रिश्ते निभाती हूं मैं....
ए जमाने
जैसी भी हूं मैं
सच मानो तुम से तो बहुत
अच्छी हूं मैं....