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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-2

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-2

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था ज्ञात कृष्ण को समक्ष महिषी कोई बीन बजाता है,

विषधर को गरल त्याग का जब कोई पाठ पढ़ाता है।

तब जड़ बुद्धि मूढ़ महिषी कैसा कृत्य रचाती है,

पगुराना सैरिभी को प्रियकर वैसा दृश्य दिखाती है।


विषधर का मद कालकूट में विष परिहार करेगा क्या?

अभिमानी का मान दर्प में निज का दम्भ तजेगा क्या?

भीषण रण जब होने को था अंतिम एक प्रयास किया,

सदबुद्धि जड़मति को आये शायद पर विश्वास किया।


उस क्षण जो भी नीतितुल्य था गिरिधर ने वो काम किया,

निज बाहों से जो था सम्भव वो सबकुछ इन्तेजाम किया।

ये बात सत्य है अटल तथ्य दुष्काम फलित जब होता है,

नर का ना उसपे जोर चले दुर्भाग्य त्वरित तब होता है।


पर अकाल से कब डर कर हलधर निज धर्म भुला देता,

शुष्क पाषाण बंजर मिट्टी में श्रम कर शस्य खिला देता।

कृष्ण संधि की बात लिए जा पहुंचे थे हस्तिनापुर, 

शांति फलित करने को तत्पर प्रेम प्यार के वो आतुर।


पर मृदु प्रेम की बातों को दुर्योधन समझा कमजोरी,

वो अभिमानी समझ लिया कोई तो होगी मज़बूरी।

वन के नियमों का आदि वो शांति धर्म को जाने कैसे?

जो पशुवत जीवन जीता वो प्रेम मर्म पहचाने कैसे?


दुर्योधनसामर्थ्य प्रबल प्राबल्य शक्ति का व्यापारी,

उसकी नजरों में शक्तिपुंज ही मात्र राज्य का अधिकारी।

दुर्योधन की दुर्बुद्धि ने कभी ऐसा भी अभिमान किया,

साक्षात नारायण हर लेगा सोचा ऐसा दुष्काम किया।


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