दो खास दिन
दो खास दिन
आज का दिन भी कितना खास है
सारा समा मेरे पास है
दुख का डर अब दूर है मुझसे
बस खुशियों का आकाश है
इस भीड़ के माहौल में भी
मेरा मन कहां मेरे पास है
है खयाल आंखों में उस दिन का
उस मंजर की ही याद है
वो दिन भी कितना खास था,
तब भी ये समा मेरे पास था
खुश थी तब ये सारी दुनिया
बस एक मैं ही उदास था
मैं रोता रहा दुनिया हंसती रही मुझपर
एक अजीब सा अहसास था
और आज जब मैं हंस रहा हूं
तो भी न किसी को बर्दाश्त है
जब खुशी देखना चाहता हूं सबके चेहरे पर
तब सभी की आंखें उदास हैं
सच में कितने विपरीत ये दो दिन हैं मेरे
पर फिर भी बहुत ख़ास हैं
एक शुरुआत मेरे इस जीवन की
जब मैंने धरती पर जन्म लिया
तो एक शुरूआत मेरे नये जीवन की
जो इस जीवन के बाद है।