दिल कहता है:-लफ्ज़
दिल कहता है:-लफ्ज़
के अब डर लगता है
नाराज़ मुझसे मेरा घर लगता है
तुम्हारे होने से जो मैं था
ना जाने अब उस घर मे कोने में कौन पड़ा रहता है
तुमने मेरी बेवफाई में ना जाने कितने कसीदे पढ़े
अब तो मुझको खुद से डर लगता है
तुम दूर हो अब यही अच्छा है
अब तो इस घुटन में ही मन लगता है
मैं बेवफा, मुझ पर इल्ज़ाम तेरे लाखो है
अब इनको सच करने को मन कहता है
मैं रोज याद कर तुझे खुद को दिलासा देता हूँ
अब तो इस दिलासे को दफ्न करने को जी करता है
हथेलियों के नक्शे बदल गये आंसू पोछते हुए
मैंने सुना की तूने कहा तेरे ना होने से क्या फर्क पड़ता है।