दिल ही यह बदनाम है।
दिल ही यह बदनाम है।
कभी सोचा हैं, हम सोचते हैं कहा?
दिल या दिमाग, ये आजतक सबसे बड़ा जाल है रहा...
मुझे लगता है, खामखा ही दिल बदनाम है...
क्या कभी सोचा हैं, दिमाग का ही दिल ले चुका इल्जाम है,
हमारा दिमाग ही हैं बड़ा शातिर, जैसे कोई शैतान
शायद इसी वजह से, बेचारा दिल हैं यू बदनाम...
दिमाग बेवकूफ़ होने के बावजूद, सह लेता है दिल का इल्जाम
शायद नादान दिल है अंजान, इसीलिए तो वो है बदनाम...
दिल से सोचो कहने वाले, ये भूल जाते हैं,
की दिमाग है सोचता, दिल नहीं, फिर क्यूँ भला दिल बदनाम है?
जिंदा हैं, हम दिल की वजह से, हैं सीने में कैद जो...
सह कर भी रो ना सके हैं, सिर्फ धड़कना ही जाने वो...
दिल की धड़कन, जीवन अपना, दिमाग का ही है काम सोचना,
दिल ना माने, ये कह के ही, दिल ही यू आबाद है,
इसलिए ले के इल्जाम, दिल ही यू बदनाम है...
यह दिल भी ना.. बड़ा दिलदार है,
न जाने क्यूँ करता रहता वादे हजार है,
चोट खाएँ, फिर कर न पाएँ यह ही बर्दाश्त,
बनता सरेआम यह दर्द का शिकार है....
चलो आज भी उसकी ही लग गयी बोली,
लुट गया वही खुलेआम हैं,
इतना होने के बावजूद, आख़िर दिल ही यह बदनाम हैं....
