धैर्य
धैर्य
सांस साधकर घर में बैठो,
संकटकाल निकल जाने दो,
कुछ दिन भ्रमण नहीं करने से
समय चक्र फिर नहीं जाएगा,
या घर में बंधकर रहने से
आसमान गिर नहीं जाएगा,
प्राण फिसलने से अच्छा है,
थोड़ा समय फिसल जाने दो,
प्रबल शत्रु के आगे कुछ पल
रुक जाने में दोष नहीं है,
अपनों की रक्षा की खातिर
झुक जाने में दोष नहीं है,
बस बचाव ही निराकरण है,
बांकी सोच बदल जाने दो,
इंसानों को अगर विधाता सुख
दुख का एहसास न देता,
क्यों सीमा लांघी जाती यदि
अतिशय भूख - प्यास न देता,
चलो प्रायश्चित भी कर लेंगे,
पहले कदम संभल जाने दो।